गली का प्रेत परिवार जीने गली खाली करवा दी
व्यक्ति का पूरा परिवार ही एक साथ समाप्त हो गया था, जिसके बाद पूरी गली में भूतों का जमघट होने का शोर मचा।
और बहुत से लोग गली छोड़कर चले गए, और कुछ लोग इसी वजह से अपना खुद का मकान आनन फानन में सस्ते दामों में बेंचकर कहीं और चले गए।
दरअसल जब उनका पूरा परिवार समाप्त हो गया और उन लोगों की अन्त्येष्ठि कृया आदि हो गई।तब उन लोगों के रिश्तेदार और परिवार के सभी लोग उस घर का सामान आदि सब कुछ अपने साथ लेकर चले गए और बोले ये मकान बेंचा जाएगा जब कोई ग्राहक मिल जाएगा तब।
गरमी का मौसम था इसलिए उस गली के ज्यादातर लोग अपने छतों पर सोते थे, वो लोग भी जिनके घर मौतें हुई थीं।
उस रात उस घर के दोनों पड़ोसी और गली में भी कुछ लोग छत पर सोये थे, तभी दोनों पड़ोसियों के परिवार के लोगों को एक साथ कई लोगों के हंसने और बात करने की आवाज आई।
रात के करीब एक बज रहे थे, और सभी लोग गहरी नींद में थे, तो आवाज सुनकर सबकी नींद खुल गई।
दोनों पड़ोसियों ने अपने छतों से उनके घर में झांककर देखा तो नीचे लांन में उनका पूरा परिवार पति पत्नी दोनों बच्चे और कुत्ता सभी बैठकर बातें कर रहे थे और बात बात पर हंस भी रहे थे।
फिर दोनों परिवार डर गया और दो दिनों तक छत पर सोने नहीं गए। तीसरे दिन फिर दोनों पड़ोसियों ने आपस में बात किया,कि हो सकता है अभी जल्दी की बात है इसलिए हम लोगों को वहम हुआ हो।
तो आज भी छत पर सो कर देखा जाए।सो वो लोग उस रात फिर छत पर सोये, लेकिन बहुत रात तक उन लोगों को नींद नहीं आई और आपस में बातें करते रहे।
काफी देर के बाद उन लोगों को उस घर से ज़ोर ज़ोर से झगड़ने की आवाज आने लगी, और वो आवाज गली के लोग भी सुन रहे थे।
फिर सामान पटकने की आवाजें और रोनें की आवाजें आ रही थी,गली के लोग भी अपने छतों पर खड़े होकर सुन रहे थे और दोनों पड़ोसी अपने छतों से देख भी रहे थे। फिर कुछ लोग दावा करने लगे कि रात होने के बाद वो आदमी अपने कुत्ते को टहलाता है।
और ये सब गली के लोग देखते हैं, लेकिन उनसे कोई कुछ बोलता नहीं है। फिर दोनों पड़ोसी और गली के सभी लोग अपने अपने घरों में सोने लगे,उन लोगों ने छत पर सोना छोड़ दिया।
लेकिन दोनों पड़ोसियों को वो लोग उनके ड्राइंगरुम में और बेडरूम में भी बैठे दिखाई देने लगे। फिर सबने मिलकर तय किया कि किसी तांत्रिक को बुलाया जाए और इसका उपाय किया जाय ताकि वे लोग अब किसी को ना दिखें।
गली वालों ने मिलकर तांत्रिक से पूजा करवाया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा, इसलिए तांत्रिक को फिर बुलाया गया लेकिन वो आनें से मना कर दिए। और बोले वे सब अतृप्त आत्माएं हैं, इसलिए अब किसी को भी वहां चैन से नहीं रहने देंगे।
अगर उनके अपने घर के लोग उसी घर में पूजा कराएं तो छुटकारा मिल सकता है। फिर उनके रिश्तेदारों के जरिए उनके घर के लोगों से संपर्क किया गया, और समस्या का निदान करने के लिए कहा गया।
लेकिन उन लोगों ने उस घर में कोई भी पूजा करने से इंकार कर दिया, और कहा उस घर को वो लोग बेचेंगे।
तो दोनों पड़ोसी अपने घरों को कम दाम में बेंचकर कहीं और चले गए। और आसपास के किराएदार भी वो गली छोड़कर दूर चले गए।
मैं स्कूल में पढ़ाने जाती थी, और घर आने के बाद थोड़ा समय आराम करने के बाद घर के काम निपटाती थी। और मेरे पास इतना समय कभी नहीं होता था कि- बाहर निकल कर लोगों से मिलूं या उनसे बातें करुं।
इसलिए मैं इन सभी बातों से अनभिज्ञ थी। और उस जगह पर हमलोग नए थे, तो ना ही किसी के घर जाते थे और ना ही उस गली का कोई हमारे घर आता था।
फिर जिस किराए के घर में हमलोग रहते थे,उस घर के मकान मालिक पलवल में रहते थे और समय पर आकर अपना किराया ले जाते थे।
हम जिस घर में रहते थे, वो बहुत बड़ा प्लाट था।चार कमरे पूर्व दिशा में बने थे जिसमें दो कमरे हम लोगों ने लिया था और दो कमरे खाली थे।
बाकी का प्लाट खाली था और सामने एक नीम का पेड़ एक किसी और चीज का पेड़ जो हम लोगों को समझ में नहीं आया, और हमारे कमरे के बाहर बगल में एक अनार का पेड़ था।इन सबके बाहर बड़ी सी बाउंड्री तीनों तरफ से बनीं थी।
दक्षिण दिशा में बड़ा सा लोहे का गेट लगा था, तो इसलिए भी हमलोग अपनी बाउंड्री के अंदर ही खुश रहते थे।
तो एक दिन संयोग से जब मकान मालिक किराया लेने आए तो सबसे पता करते हुए एक दम्पत्ति मकान मालिक से मिलने आए और जो दो कमरे खाली थे उनमें से एक को किराए पर लेने की बात किए।
मकान मालिक के पूछने पर वे लोग बोले हम लोग इसी गली में उस घर में किराए पर रहते थे, जिस घर के सामने वाले घर के पूरे परिवार की असमय मृत्यु हुई है। ये गली इसलिए नहीं छोड़ना चाहते क्योंकि आदमी जहां काम करता था। वो यहां से पास था और वो पैदल ही जाता था।
मकान मालिक ने उसे एक कमरा दे दिया, और वो दोनों पति-पत्नी एक बेटा और एक बच्चा पेट में, फटाफट उसी दिन रहने आ गए। दिन में जो सामान ला पाए ले आए और सात बजते ही सामान लाना ये कहते हुए छोड़ दिए कि बाकी का सामान कल दिन में लाएंगे।
खैर वो सब खाना लेकर आए थे तो जल्दी ही खाकर सो गए। और हम लोग हमेशा की तरह रात में दस बजे खाकर सोए।
रात के दो बजे दोनों पति-पत्नी दो साल के बच्चे को सोता छोड़कर मेंरा दरवाजा जोर जोर से पीट रहे थे और कांपती हुई आवाज में दरवाजा खोलो बोल रहे थे।
मैंने आंखें मलते हुए दरवाजा खोला तो सामने इन दोनों को देखा, दोनों के पैर जमीन पर सीधे खड़े नहीं थे बल्कि कांप रहे थे। मैंने कारण पूछा तो दोनों में से किसी की आवाज साफ समझ में नहीं आ रही थी।
मैंने सिर्फ इतना समझा कांपती हुई आवाज में "वो यहां भी आ गया" और उस स्त्री ने मेरे कंधे को कसकर पकड़ लिया। ऐसे में अचानक से मुझे कुछ समझ में नहीं आया तो पूछा तुम लोगों का बच्चा कहां है?
तो बोली समशाद सो रही है, तो मैंने कहा उसे भी ले आओ वो छोटा है ना तो अकेले डर सकता है। लेकिन दोनों ही जाकर अपने बच्चे को लाने के लिए तैयार नहीं थे।
मैं भी असमंजस में थी, क्योंकि एक तो अन्जान लोग। ऊपर से वो अपनी बात साफ बता भी नहीं पा रहे थे, मेरे कमरे में दोनों बेटे और पतिदेव गहरी नींद में सो रहे थे। पहले सोचा पति को जगाऊं।
लेकिन फिर उसके बच्चे का ध्यान आया तो उन लोगों के साथ उन्हीं के कमरे में चली गई। पानी की बोतल अपने घर से ही लेकर गई, फिर उन दोनों को पानी जबरदस्ती ही पिलाया बच्चा सो ही रहा था।
मैंने उन लोगों को नार्मल करने के लिए नाम और कहां के रहने वाले हैं सब कुछ पूछा।उन लोगों का डर कुछ कम हुआ था तो कुछ जानना चाहा लेकिन वो लोग सुबह बताने को बोले।
लेकिन पूरी रात मुझे मेरे कमरे में नहीं जाने दिए। जबकि मुझे चिंता थी कि सुबह सुबह सभी लोग अॉफिस और स्कूल जाएंगे, और मेरी नींद भी पूरी नहीं हो रही है।
खैर उन लोगों ने बताया वो लोग बिहार के थे, और स्त्री का नाम यास्मिन और उसके पति का नाम मुश्ताक था। फिर सुबह उन लोगों का डर कम हुआ तो मैं अपने कमरे में गई। और उस दिन बच्चों को और खुद भी स्कूल जाने से रोक लिया।
फिर उपरोक्त सारी कहानी उन्हीं लोगों ने सुनाई, और कहा वो आदमी जिन्होंने फांसी लगाई थी, वो रात में टॉयलेट के बाहर खड़ा था और याश्मिन बाहर और मुश्ताक टॉयलेट में था।
और वो आदमी याश्मिन को घूर घूर कर देख रहा था और हट भी नहीं रहा था। फिर गेट के बाहर उसका पूरा परिवार दिखाई देने लगा तो उस आदमी की आत्मा बाहर चली गई।
और उन दोनों ने मेरे घर का दरवाजा खटखटाया। वो दोनों रात में कभी अकेले बाथरुम भी नहीं जाते थे, अगर जाना होता तो एक वाशरूम के बाहर होता दूसरा अंदर।
आने के दूसरे महीने याश्मिन ने एक बेटी को जन्म दिया, फिर रोज बच्चे का गंदा कपड़ा वहां सुखाती थी, जहां मैंने तुलसी का पौधा लगाया था और रोज़ तुलसी की पूजा करती थी।
मेरे मना करने पर भी कहती थी, दीदी इसमें क्या है जैसे सभी पौधे होते हैं, वैसे ये भी है। और तुलसी जी के ऊपर ही उसके गन्दे कपड़े दिखते थे जब मैं स्कूल से आती थी तो। वो लोग पढ़े लिखे बिल्कुल नहीं थे तो कुछ भी समझाना मुश्किल था।
फिर बिना किसी लड़ाई झगडे के मैंने उसी समय दस दिन के अंदर वो घर खाली कर दिया। और जहां पढ़ाती थी उसके पास ही घर ले लिया।
फिर हम लोग वहां कभी नहीं गए तो कोई समाचार भी नहीं मिला। हालांकि करीब एक साल तक रहने के बाद भी हम लोगों को ना ही वहां पर कभी डर लगा और ना ही कभी कोई ऐसी चीज दिखाई दी।
Apecial tganks to manorama tripathi mam
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