क्या वो स्वयं राम लखन थे ?

मुझे नहीं मालूम कि भगवान शकल सूरत मे कैसे हैं, अतः अगर दर्शन हुए भी हैं तो मैं उन्हें पहचान नहीं पाया हूं।

पर मनुष्य के रूप में कई बार मेरी संकटों मे सहयता करनेवाले व्यक्तियों को भी मैं ईश्वर काही रूप मानता हूँ।

ईश्वर की व्यवस्था कैसी होती है और कैसे करवाते हैं इस समंबन्ध मे अपने जीवन की एक सत्य घटना आप सबसे शेयर कर रहा हूँ।

धटना का सही वर्ष मुझे याद नहीं आरहा है शायद 1992-अक्तूबर रहा होगा । मै और मेरे दोमित्र जो आयु में मुझ से बडे थे पं लक्ष्मी नारायण शर्मा और लाला सुशील अग्रवाल तीनों ने ईश्वर प्रेरणा से एक साथ अचानक चित्रकूट जाने का प्रोग्राम बनाया और चित्रकूट पहुंच गये। हमारे तीनों के पास एक एक बेडिंग और एक एक बैग जिसमें अन्य जरूरत का सामान था लेकर मंदाकिनी गंगा के तट पर बने बने होटल, लाज आदि रहने के लिए तलाश कर रहे थे पर कुछ हमारी क्षमता से अधिक महगें थे और कुछ मे हमें साफ सफाई पसंद नहीं आरही थी।

जब काफी देर तक हम किसी निश्चय पर नही पहुंचे तो यह तय किया कि मंदाकिनी स्नान कर ने के बाद कोई व्यवस्था देखेंगे। स्नान के बाद तट पर पूजा की और वहीं बने एक ढाबा टाइप रेस्टोरेंट में नाश्ता किया ।इसके बाद तय हुआ कि सामान किसी दुकान पर रख कर घूमने चलते हैं फिर लौ ट कर रहने की जगह देखेगें।और सामान एक दुकान पर रख कर घूमने निकल गए।

हम लोग हनुमान धारा आदि स्थान घूमते हुए कामदगिरि पर्वत के प्रथम मुख द्वार पर पहुंचे और वहाँ दर्शन किये ।दर्शन करने के बाद वहीं भंडारा चल रहा था वहीं भर पेट प्रसाद खाया और घूमने के लिए परिक्रमा मार्ग पर चल दिऐ ।

घूमते हुए हम लक्ष्मण टोरिया पर पहुंचे ।शाम के लगभग पांच बज रहे थे और तीनों मित्र बहुत प्रसन्न थे।अचानक लाला सुशील कुमार बोले कि मुकट बाबू रात को ठहरेंगे कहाँ?मेरे मुंंह से निकला कि जिसके दरवाजे पर आये हैं वही सब इन्तजाम करेगा हम तो राम जी के यहाँ आये हैं तो व्यवस्था की चिंता क्यों करें ।मेरे दोनों मित्रों के मुंह से निकला बिल्कुल ठीक बात है।

(अब तक का जो भी घटना क्रम ऊपर लिखा वह केवल पाठकों के लिए प्रस्तावना भर है अब आगे ईश्वर की व्यवस्था देखिये)

शाम हो रही थी हल्का अंधेरा फैलने लगा था ठंड भी बढने लगी थी।हम तीनों मित्र रामायण की चौपाईयाँ गाते हुए मस्ती मे वापस चित्रकूट बाजार की ओर बढ़ रहे थे।

अचानक पहाड़ के नीचे बने मठ जैसे मकान में से एक साया निकलता दिखाई पडा ,पास जाने पर देखा कि वह एक सन्यासी 18–20 वर्ष की युवती थी ।हमारे पास पहुचने पर उसने कहा कि भैया अगर ठहरने की कोई व्यवस्था न हो तो तुम यहाँ ठहर जाओ हमारे पास काफी जगह है।

उसकी बात सुनकर हम स्तब्ध रह गए कि इसे हमारी जरूरत कैसे मालूम हुई।अगर हम यहाँ ठहरे तो किसी लफडे मे न पड जायेंं ।उस सन्यासिन को हमने हाथ जोड कर मना कर दिया कि नही बहन हमारे पास ठहरने की व्यवस्था है।और आगे बढ गए।तथा इस घटना पर मनही मन मंथन करने लगे उसे हमारी जरूरत कैसे मालूम हुई।

पर हम लोगों के मन मे ठहरने संमबन्धित कोई.चिंता नहीं थी हम लोग इस समंबन्ध मे बेफिक्र थे।

कुछ और आगे बढे तो हमने देखा कि एक पंद्रह सोलह वर्ष का लडका जिसने सफेद धोती जनेऊ धारण किये तिलक लगा हुआ था हमारे पास आया और बोला कि आप तीनों को महंत जी बुला रहे हैं ।हमने कहा कौन से कहांं के महंत हम किसी को नहीं जानते हमलोग तो यात्री हैं।पंडित जी किसी और को बुलाया होगा आप कहीं गलती पर हो। वह युवक बोला कि महंत जीने कहा है कि सामने से तीन आदमी आरहे हैं उन को कहना कि महंत जी बुला रहे हैं ।तो आप चलिये वह इंतजार कर रहे हैं।

खैर हम लोगों ने महंत जी के पास जाने का निर्णय लिया ःःउस ब्राह्मण बालक के साथ चल दिऐ ,सोच रहे थे कि कहीं कोई गलती हो गई है वरना महंत जी हमें क्या जाने।

थोडी देर के बाद हम तीनों मित्र उस ब्राह्मण बालक के साथ कामदगिरि पर्वत के प्रथम मुख द्वार के मंदिर पर पहुंचे तो वह ब्राह्मण बालक बोला कि देखो वह सामने महंत जी मंदिर पर बैठे हैं उनके पास चले जाओ ।मुझे रामजी की संध्या आरती की तैयारी करनी है काम बहुत है कहता हुआ भीड़ मे गुम होगया।हम लोग महन्त जी के पास गये ,मंदिर की प्रतिमा को नमन किया तथा महंत जी को प्रणाम कर पूछा कि महाराज हमें क्यों बुलवाया है। महंत जी एक क्षण को हमारी बात सुनकर चुप रह गए। फिर बोले आप लोग कहाँ से और किस काम से आये हो।हमने कहा कि हम तीनों मित्र हैं और आगरा से चित्रकूट भ्रमण के लिए आये हैं वे सब स्थान देखने की इच्छा है जहाँ जहाँ श्री राम ने निवास किया है।

महंत जी ने पूछा ठहरने की क्या व्यवस्था है ।हमारा जबाब मस्ती भरा था कि जिसके दरवाजे पर आये हैं वही व्यवस्था बताऐगा कि किस जगह रहना है।

एक क्षण मे ही महंत जी ने कहा कि रघुनाथ जी के यहां आपकी सारी व्यवस्थाएं तैयार हैं आप सामान लेकर आजाईये ।मेरे दोनों मित्रों ने कहा कि तुम यहीं रुको हम सबका सामान लेकर आते हैं। जब वे जाने लगे तो मैने फिर पूछा कि जगह तो मिल जायेगी ।महंत जी बोले यहाँ की व्यवस्था श्री रघुनाथ जी के आदेशों पर होती है मन मे किसी प्रकार का संदेह न करें।

थोड़ी देर बाद वे दोनो सामान लेकर आगये तो महंत जी ने एक सेवक को कहा कि इन को संत निवास मे ठहरा दो।

संत निवास मे कोई ठहरने का स्थान बगीचे में बना एक बडा हाल था और उसमें चार तख्त पडे थे।तथा नहाने एवं शौचालय की व्यवस्था थी।हमलोगों ने अपने बिस्तर लगा लिए।तथा फ्रेश होकर बैठे ही थे और रात के खाने की व्यवस्था के लिए किसी होटल मे जाने की सोच ही रहे थे कि महंत जी का वही सेवक आया उसके पास चार छोटी छोटी बाल्टियां थी और वह खाने का आग्रह करने लगा बोला महंत जीने प्रसादी भेजी है ग्हण करें ,भूख तो लग ही रही थी तो हम तुरन्त ही भोजन के लिए बैठ गये। पत्तल पर पूडी सब्जी आलू की एवं सकोरे मे खीर भर पेट खायी ।बहुत ही स्वादिष्ट प्रसाद था। जाते हुए सेवक कह कर गया कि प्रातःकाल नाश्ता आप सबको महंत जी के साथ करना है।

यह कह कर सेवक चला गया और हम लोग राम जी की चर्चा करते हुए निद्रा मे चले गए।

प्रातःकाल उठे नहा धोकर तैयार हुए ही थे कि महंत जी का सेवक नाश्ते के लिये बुलाने आगया।हम लोग महंत जी के पास पहुंचे वे एक चौबारे टाईप हाल में बैठे थे वहां कयी साधु संत और भी कयी व्यक्ति बैठे थे महंत जी को प्रणाम कर हम लोग बैठ गए .महंत जी ने हमारा कुशल क्षेम पूछा।तथा नाश्ता परोसा गया ,नाश्ते में भीगे चने, चार पेडे तथा एक कुलिया चाय थी।नाश्ता करने के बाद जब हम चलने लगे तो महंत जी बोले कि कहीं भी घूमने जाना पर भोजन यहींं पर राम जी के होटल में ही करना।

हम लोग दिन भर गुप्त गोदावरी, सती अनुसुइया आश्रम, स्फटिक शिला हनुमान धारा आदि अनेक स्थलों पर घूमे।हमें दिन में भूख लगी तो तीनो ने तय किया कि तहीं कहीं भोजन कर लेते हैं वहां भोजन करने कौन जाय और फिर किसी के दान का खाना ऐसा भाव मन मे आया।

अब हमलोगों ने भोजन के लिए दुकानो ,ढाबों का रुख किया।हमें हर जगह गंदगी ही नजर आयी और भोजन सफाई के चक्कर में कहीं नहीं कर सके।शांयकालीन लौट कर वापिस संत निवास आये।और कमरा बन्द करके जो कुछ धर से लाये थे वह सब खा कर भूख मिटायी ।थोड़ी ही देर मे वही महंत जी का सेवक आया बोला आपलोगों ने अगर भोजन नहीं किया है तो भोजन करलें ,हमारा वही अहंकार आडे आया कि हम लोग खा चूके हैं भूख नहीं है। सेवक चला गया ।रात्रि करीब नौ बजे वह पुनः आया और बोला कि अब तो भूख लग आयी होगी चलिये प्रसादी लेलीजिए ।हमारा अहंकार फिर आडे आगया जबाब दिया भूख नहीं है। वह पुनः चला गया।

रात्रि लग बजे वह पुनः आया और बोला कि अगर वहां जाकर खाने में दिक्कत है तो मै भोजन यही ले आऊं।हमारा वही जबाब रहा कि भूख नहीं है। जबाब सुन कर वह चला गया।

आधी रात के बाद हमतीनो को बहुत तेज भूख लगी और पास मे जो कुछ था पहले ही खा चुके थे । भूखे पेट रात काटनी मुश्किल हो रही थी जैसे तैसे सुबह नाश्ते के इंतजार में रात काटी ,सुबह जल्दी ही नहा धोकर नाश्ते के इंतजार में बैठ गये। थोड़ी देर मे सेवक नाश्ते के लिए बुलाने को आगया ।हम लोग नाश्ते वाले हाल में पहुंचे वहां महंत जी बैठे थे हमारे जाते ही बोले कि आज आप लोग रामजी के घर मे भूखे सोये हो राम जी को बहुत कष्ट हुआ महंत जीके नेत्रों से आंसू बह रहे थे कह रहे थे जिद अच्छी नहीं होती।उनकी यह स्थिति देख कर हम सब ग्लानि से भर गए।और हम लोग रोते हुए उनके पैरों मे बैठ गए और बोले कि गलती हो गई हम भविष्य में ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिसमें रामजी को कष्ट हो।वहाँ बैठे हुए अन्य लोग भी यह मंजर देख कर जडवत होगये सबके मुख से एक ही बात निकल रही थी जय हो रघुनाथ जी की।

कुछ देर मे हम लोग सामान्य हुए ।सबने वही भीगे चने ,पेडे, एवं चाय का नाश्ता किया,नाश्ते के बाद महंत जी बोले कि रामजी की इच्छा है कि दोपहर को प्रसादी यहींं ग्रहण करो हमने उनसे कहा कि रामजी का हर आदेश सिर माथे ।

आज शाम को हमारा वापसी का प्रोग्राम था अतः कहीं दूर जाना भी नहीं था।

दोपहर को हम लोग प्रसाद ग्हण करने के लिए गये वहाँ काफी व्यक्ति पंगत मे बैठे थे हम लोग भी बैठ गए ।प्रसाद परोसना शुरू हुआ।कि अचानक महंत जी एक बडा थाल जिसमें प्रभु रघुनाथ जी को भोग लगाया गया था अपने हाथ मे लिए आये और उसमें से हमें प्रसाद परोसा।उन्होंने बडे प्रेम से भर पेट प्रसाद खिलाया।हम अपने भाग्य को सराह रहे थे ऐसा लग रहा था कि स्वयं प्रभु श्रीराम महंत रूप मे भोजन करवारहे हैं।झएऐदत्रत

भोजन उपरांत हम लोग अपने कमरे मे जाकर विश्राम करने लगे। चित्रकूट में वानर बहुत अधिक हैं अतः कमरे के दरवाजे बंद कर लिये कि कोई वानर कमरे में न आजाऐ।तथा खिडकी जिसमें सींखचे लगे थे खुली रखी।

कुछ समय बाद दो बालक जंगले के बाहर आकर खडे हो गये।और बोले आप सबको महंत जी बुला रहे हैं।हमलोगों ने कमरे में ताला लगाया और महंत जी के पास गए वहाँ काफी भीड़ थी मिलने वालों की ।जब महंत जी के पास पहुंचे तो हम लोगों ने उन्हें प्रणाम किया और बोले कि महाराज कैसे बुलाया तो उनका उत्तर था हमने तो नहीं बुलाया ।हम चुप और सोचा कि कहीं कुछ गलती होगयी है और उन्हें नमस्कार कर वापस कमरे में आगये ।

कुछ देर बैठे ही थे कि वे दोनों बालक पुनः खिडकी पर दिखाई दिये और बोले कि आपको महंत जी ने जल्दी बुलाया है चलो ।हम लोगोंं ने विचार किया कि शायद अब बुलाया है ।यह सब क्षणों हुआ ,फिर खिडकी पर नजर गई तो पाया वहाँ कोई दूर दूर तक नहीं था।

हम लोग पुनः भीड़ में होते हुए महंत जी के पास पहुंचे और बोले कि आदेश करें कैसे बुलाया। महंत जी आवाक हमें देखने लगे और बोले पूरी बात बताओ कि मामला क्या है।हमने अक्षःरस पूरी धटना दोहरा दी।पूरी बात सुन कर उनके नेत्रो मे आंसू आ गए गला भर आया बोले प्रभु आप इस सेवक पर कब कृपा करोगे।हमसे बोले मुझे पूरे जीवन इन बालकों ने बहुत परेशान किया है इनके पीछे भागता रहा हूँ पर कभी हाथ नहीं आये।अब अगर दोनों मिल जायेंं तो पकड़ कर मुझ तक ले आना। मै आभारी रहूंगा। हमलोगों ने कहा कि आज शाम की ट्रेन से वापिस आगरा जाना है आप विदाई आशीर्वाद दें ।उनहोंने कहा आपको आगरा सकुशल पहुचाना रघुनाथ जी के आधीन है मेरा तो यही कहना है कि जब भी समय मिले आते रहना ।आप पर रघुनाथ जी की कृपा हमेशा बनी रहे।हमलोगों ने महंत जी के चरण छूये प्रणाम किया और वापिस संत निवास कमरे में आ गए।

शाम को लगभग चार बजे तक उन बालकों का इन्तजार किया मे रे दोनों साथी उन्हें बाहर जाकर भी ढूंढ आये पर वे कहीं नहीं मिले। कमरा सेवक के हवाले कर सामान लेकर स्टेशन जाने के लिए वाहन की तलाश में थे कि एक जीप हमारे पास आकर रूकी।उसमेसे एक सज्जन उतरे और बोले मैं DMO हूँ DMO का(इसका अर्थ मै तुरंत समझ गया कि सज्जन रेलवे होस्पिटल दमोह के डिविजनल मैडिकल आफीसर हैं ,क्योंकि मैं स्वयं भी रेलवे कर्मचारी कामरशियल विभाग का था) मैने उन्हें विभागीय अधिकारी के नाते नमस्कार किया। उनसे मैने पूछा कि आप मुझे कैसे जानते हैं।उनका उत्तर था कि उन्होंने हमें महंत जी के पास बात करते देखा था जब वह खुद भी वहीं बैठे थे।

उन्होंने पूछा कहाँ जा रहे हो मेरा उत्तर था रेलवे स्टेशन चित्रकूट धाम करवी ।उन्होंने अपने जीप ड्राइवर को कहा कि इन लोगों को लेकर स्टेशन छोड़ कर आओ।और हमसे कहा जीप में बैठिये उन्हें धन्यवाद देते हुए जीप में बैठ गये और रेलवे स्टेशन बिना किसी कष्ट के पहुंच गये।

महाकौशल एक्सप्रेस हमारी गाड़ी थी., जनरल टिकट हमारे पास था आरक्षण स्टेशन पर प्रयासो के बाद भी मिला नहीं पर इसका मन मे कोई तनाव नहीं था निशिचिंत थे ।ट्रेन आयी हमारे ठीक सामने एक थ्रिटियर का डिब्बा था हम उस मे घुसे तो दरवाजे के बगल के कबिन मे तीन बर्थ खाली पडी थीं यह सोच कर हम तीनों ने उन पर अपने अपने बिस्तर लगा लिये कि जब टी टी ई महोदय आयेगेंं तब रिजर्वेशन की बात करेंगे ।लेटने के बाद तीनों दिनों के घटना क्रम पर मंथन करते कब नींद आ गई पता नहीं चला ।सुबह जब आंखे खुली तो गाडी भांड ई रेलवे स्टेशन पास हो रही थी जो आगरा छावनी हमारे गंतव्य से कुछ ही मिनट की रेल दूरी पर था ।कुछ ही मिनटों मे आगरा छावनी रेलवे स्टेशन हमारा गन्तव्य आगया और हम सब घर आगये।

आपको उन महंत जी का नाम बताना शेष रह गया उन राम भक्त का नाम था महंत प्रेम पुजारी।

आज इस घटना को वर्षो बीत गए हैं पर ऐ सा लगता है कि कल की सी बात है।

मैने जीवन में सरकारी स्तर एवं निजी स्तर पर बहुत यात्रा की हैं पर चित्रकूट की इस यात्रा का सा आनंद कभी नहीं मिला क्योंकि हम सब श्री रघुनाथ जी केअतिथि थे,और प्रभु श्री राम के द्वारा की गई व्यवस्था थी।इनकी कृपा का कोई अंत नहीं है।

लोट कर आने के बाद मैं ने सम्पूर्ण यात्रा के अनुभव अपने आध्यात्मिक गुरु महर्षि यतीन्द्र जी से साझा किए और अपने अनुउत्तरित प्रश्नो के उत्तर मांगे तो उन्होंने एक ही उत्तर दिया कि यह सब समर्पण के खेल हैं ।परिणाम आपके समर्पण स्तर पर निर्भर करते हैं ।


स्त्रोत https://hi.quora.com/profile/Mukut-Sharma-1?ch=10&share=2f060ba3&srid=aKE6X

Thanks to m b l sharma

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