पिता ने जब सब बेंचकर बेटी के प्यार की कीमत चुके

निष्ठुर

ट्रेन में समय गुजारने के लिए बगल में बैठे अधेड़ से बात करना शुरु किया।

" आप कहाँ तक जाएंगे अंकल। "

" इलाहाबाद तक । "

हमने ठिठोली की " कुंभ लगने में तो अभी बहुत टाइम है । "

" वहीं तट पर इंतजार करेंगे कुंभ का .....बेटी ब्याह लिए , अब तो जीवन में कुंभ नहाना ही रह गया है । "

" अच्छा परिवार में कौन कौन है । "

" कोई नहीं बस बेटी थी पिछले हफ्ते उसका ब्याह कर दिया । "

" अच्छा ! दामाद क्या करता है । "

" उ हमरे बेटी से पियार करता है । " कहते हुए उसने आंखें पंखे पर टिका दी ।

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद जब मैन उनके कंधे पर हाथ रखकर धीरे से कहा " दुख बांटने से कम होता है अंकल " तो मानों भाखडा बांध के चौबीसो गेट एक साथ खुल गए ।

थोडा संयत होने के बाद उन्होंने बताया..." बेटी ने कहा अगर उससे शादी नहीं हुई तो जहर खा लेगी । बिन मां की बच्ची थी उसकी खुशी के लिए सबकुछ जानते हुए भी मैंने हां कह दी और पूरे धूमधाम से शादी की व्यवस्था में जुट गया जो कुछ मेरे पास था सब गहने जेवर आवभगत की तैयारियों में लगा दिया ।

तभी ऐन शादी के एक दिन पहले समधी पधारे और दहेज की मांग रख दी । जब मैंने असमर्थता जताई तो बेटी ने कहा आपके बाद तो सब मेरा ही है.... तो क्यों नहीं अभी दे देते।

तो हमने घर और जमीन बेचकर 5 की व्यवस्था कर दी।"

"सबकुछ तो उसका ही था...बेबकूफ लडकी, आपको मना करना चाहिए था कह देते आपके मरने के बाद सब बेचकर ले जाए "मैंने सीट पर जोर से घूंसा मारा।

अधेड़ मुस्कुरा उठा इस तर्क पर "कोई बाप अपने सुख के लिए बेटी के गृहस्थी में क्लेश नहीं चाहता बेटा।"

"हद है मतलब उस लडकी के दिल में आपके लिए जरा भी प्यार नहीं।"

"नहीं ऐसा नहीं है विदाई के वक्त बहुत रोई थी।"

"और आप..." ?

"उसने एक फीकी मुस्कान बिखेरी" हम तो निष्ठुर आदमी हैं...मेरी पत्नी जब उसको हमरी गोद में छोडकर अर्थी पर लेटी थी, तब भी हम रोने के बदले चूल्हे के पास बैठकर उसके लिए दूध गरम कर रहे थे।"

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